सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा
सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा आइये आज बताते हैं इसका पुराणिक रहस्य,पूरी जानकारी के लिए कृपया अंत तक पढ़े, थोडा समय लग सकता है, परन्तु जानकारी महत्वपूर्ण है।
अलग अलग रंग अलग अलग अवर्तियाँ पैदा करते हैं, अंत में इसका उल्लेख करूँगा, मानव शरीर रासायनिक तत्वों का बना है, रंग एक रासायनिक मिश्रण है।
जिस अंग में जिस प्रकार के रंग की अधिकता होती है शरीर का रंग उसी तरह का होता है, सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा जैसे त्वचा का रंग गेहुंआ, केश का रंग काला और नेत्रों के गोलक का रंग सफेद होता है।
शरीर में रंग विशेष के घटने-बढने से रोग के लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे खून की कमी होना शरीर में लाल रंग की कमी का लक्षण है।
सूर्य स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का भण्डार है| मनुष्य सूर्य के जितने अधिक सम्पर्क में रहेगा उतना ही अधिक स्वस्थ रहेगा।
जो लोग अपने घर को चारों तरफ से खिडकियों से बन्द करके रखते हैं और सूर्य के प्रकाश को घर में घुसने नहीं देते वे लोग सदा रोगी बने रहते हैं।
जहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं, वहां रोग के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता| सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में ग्रहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।
सूर्य पृथ्वी पर स्थित रोगाणुओं ‘कृमियों’ को नष्ट करके प्रतिदिन रश्मियों का सेवन करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु भी प्रदान करता है।
सूर्य की रोग नाशक शक्ति के बारे में अथर्ववेद के एक मंत्र में स्पष्ट कहा गया है सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा कि सूर्य औषधि बनाता है, विश्व में प्राण रूप है तथा अपनी रश्मियों द्वारा जीवों का स्वास्थ्य ठीक रखता है।
अथर्ववेद में कहा गया है सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा कि सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खुले शरीर बैठने से हृदय रोगों तथा पीलिया के रोग में लाभ होता है।प्राकृतिक चिकित्सा में आन्तरिक रोगों को ठीक करने के लिए भी नंगे बदन सूर्य स्नान कराया जाता है।
आजकल जो बच्चे पैदा होते ही पीलिया रोग के शिकार हो जाते हैं सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा उन्हें सूर्योदय के समय सूर्य किरणों में लिटाया जाता है जिससे अल्ट्रा वायलेट किरणों के सम्पर्क में आने से उनके शरीर के पिगमेन्ट सेल्स पर रासायनिक प्रतिक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
और बीमारी में लाभ होता है, डाक्टर भी नर्सरी में कृत्रिम अल्ट्रावायलेट किरणों की व्यवस्था लैम्प आदि जला कर भी करते हैं।
सूर्य को कभी हल्दी या अन्य रंग डाल कर जल दिया जाता है, सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा जल को हमेशा अपने सर के ऊपर से सूर्य और अपने हिर्दय के बीच से छोड़ना चाहिए।
ध्यान रहे की सुर्य चिकित्सा दिखता तो आसान है पर विशेषज्ञ से सलाह लिये बिना ना ही शुरू करें।
जैसा की हम जानते हैं कि सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है …
- लाल रंग … यह ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है।
- हरा रंग …. यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है।
- पीला रंग … चोट ,घाव आदि में फ़ायदा करता है
- नीला रंग… दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है।
- बैंगनी रंग … श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी ..दाँतो के रोग में सहायक है।
- नारंगी रंग … वात रोग . अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है।
- आसमानी रंग … स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है।
सुरज का प्रकाश रोगी के कपड़ो और कमरे के रंग के साथ मिलकर रोगी को प्रभावित करता है।सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा अतः दैनिक जीवन मे हम अपने जरूरत के अनुसार अपने परिवेश एवम् कपड़ो के रंग इत्यादि मे फेरबदल करके बहुत सारे फायदे उठा सकते हैं।
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