चिकित्सा ज्योतिष
अपने अंदर की शक्ति को पहचानें
“आत्महीनता” की भावना कितने ही रोगों की, आधि -व्याधियों की जननी है ।अतः उससे छुटकारा पाना ही श्रेयस्कर है । परिस्थितियों को बढ़ा-चढ़ाकर देखने की आदत और अपने आप को दूसरों के सामने छोटा, हेय, हीन समझने का स्वभाव ही आत्महीनता की व्याधि का प्रमुख लक्षण है ।
इस “व्याधि” को जड़मूल से मिटाने का उपचार सुझाते हुए मन:शास्त्री कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को उचित और अनुचित का अंतर करना आना चाहिए,
ऐसे लोग अपने आप में इतना साहस संजोएँ कि जो सही है उसी को अपनाएँ और जो गलत है उससे स्पष्ट इंकार कर सकें ।
सहमत होना और हाँ करना “अच्छी बात है” चिकित्सा ज्योतिष और वह “इतनी अच्छी बात नहीं है” कि यदि “कोई बात अनुचित लग रही है” और “अनुचित लगने के पर्याप्त कारण हैं” तो भी हाँ किया ही जाए और सहमत हुआ ही जाए ।
स्पष्ट रूप से निस्संकोच भाव से अस्वीकार करने की हिम्मत भी रखनी चाहिए ।
सोच-विचार करने में यह बात भी सम्मिलित रखना चाहिए चिकित्सा ज्योतिष कि हर सही गलत बात में “हाँ-हाँ” करते रहने से दूसरों की दृष्टि में अपने व्यक्तित्व का वजन घट जाता है और आत्मगौरव को ठेस पहुँचती है, वह तो अलग ही है ।
“विकसित” और “परिष्कृत” व्यक्तित्व का अर्थ है– “अपनी मान्यता को स्पष्ट किंतु “नम्र” और “संतुलित” शब्दों में व्यक्त कर पाना।
जो ऐसा नहीं कर पाते वह अपना मूल्य आप ही गिराते हैं । चिकित्सा ज्योतिष अपने बारे में यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि मैं कुछ नहीं हूँ बल्कि यह मानना चाहिए कि मैं भी इस संसार का एक महत्वपूर्ण घटक हूँ ।
परमात्मा के इस उपवन का एक सुंदर और उपयोगी आवश्यक फूल हूँ जिसे असमय कुम्हलाने का कोई कारण नहीं है ।
दूसरों के प्रति और अपने प्रति तो विशेष रूप से अपने विचारों मान्यताओं एवं भावनाओं का मूल्य है । विश्व भर में संव्याप्त असीम बुद्धि चेतना और प्रचंड शक्ति सामर्थ्य का उपयोग तथा आवश्यक अंश प्रत्येक प्राणी में, प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है ।
अपने भीतर निहित इस शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने की सामर्थ्य प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए और नहीं है तो उसका विकास करना चाहिए
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